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चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : निरोगी दुनिया प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9413
आईएसबीएन :0000000

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क्या आप जानते हैं कि सामान्य रूप से जानी वाली कई जड़ी बूटियों में कैसे-कैसे विशेष गुण छिपे हैं?

पलास

 

पलास के विभिन्न नाम

हिन्दी में- पलास, परास, ढाक, छिडल, संस्कृत में- पलास, किंशुक, क्षारश्रेष्ठ, बंगला में- पलास गाछ, मराठी में- पलस, गुजराती में- खासरो, फारसी में- दरखतेपल, अंग्रेजी में-Bastard Teak (बस्डर्ड टीक),

लेटिन में- ब्यूटिआ मोनोस्पर्मा (Butea monosperma)

वानस्पतिक कुल- पेपीलिओनेस (Papilionaceae)

पलास का संक्षिप्त परिचय

हमारे यहाँ विभिन्न प्रकार के वृक्षों का बहुत अधिक महत्त्व रहा है। यह वृक्ष हमारे जीवन के साथ-साथ जीवन के अन्य पक्षों को भी प्रभावित करते हैं। इन्हीं वृक्षों में पलास भी एक महत्त्वपूर्ण वृक्ष है। पलास वृक्ष को हमारे शास्त्रों में अत्यन्त महत्वपूर्ण बताया है। इसे ब्रह्मा के पूजन-अर्चन हेतु पवित्र माना है। उपनयन विधि के दौरान पलास की समिधाओं से हवन करने का विधान महर्षि चरक ने कहा है। पितृकर्म में तथा यज्ञों में पलास पत्रों की चम्मच में घी भरकर आहुतियां दी जाती हैं। पलास के 3 पत्ते भारतीय दर्शनशास्त्र के त्रितत्व के प्रतीक हैं। इन तीन पत्रों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास माना जाता है। इस प्रकार से पलास वृक्ष का महत्व हमारे धार्मिक कार्यों में बहुत अधिक माना गया है। वर्तमान समय में भी इसके महत्व में किसी प्रकार की कमी नहीं आई है।

पलास के वृक्ष समस्त भारत में मैदानी भूभाग से लेकर 1200 मीटर की ऊँचाई तक में पाये जाते हैं। बहुत बलुई जमीन में यह नहीं होता है। पलास के वृक्ष मध्यम कद के पर्णपाती होते हैं। इसका तना प्राय: टेढ़ा-मेढ़ा तथा पत्तियाँ3-3 के समूह में लगी होती हैं। यह कुछ मोटी होती हैं जो एक तरफ से खुरदरी व दूसरी तरफ से चिकनी होती हैं। रंग में यह अधिक गहरी हरी होती हैं। इसके पुष्प गहरे केशरिया-लाल वर्ण के होते हैं जिनके दलपत्र गहरे कोकाकोला रंग के एवं मोटे व मखमली होते हैं। पतझड़ के पश्चात् बसन्त ऋतु आने पर वृक्ष लाल गहरे रंग के फूलों से पूरी तरह से आच्छादित हो जाते हैं। इन लाल फूलों के कारण दूर से देखने पर वृक्ष समूह अग्नि ज्वाला की भाँति दिखाई देते हैं, इसलिये इसे जंगल की आग भी कहते हैं। इसकी एक जाति के पुष्प लाल की अपेक्षा सफेद होते हैं, ऐसा वृक्ष दिव्य होता है। इसे सफेद पलास कहा जाता है।

इसके बीजों में काईनो-ट्री-आयल तथा एल्युमिनॉइड्स प्रोटीन्स आदि होते हैं। इसके पुष्पों में ब्युट्रिन नामक ग्लूकोसाइड एवं पीतरंजक होते हैं।

पलास का धार्मिक महत्त्व

जैसा कि पहले बताया गया है कि इस वृक्ष का धार्मिक महत्त्व बहुत अधिक है, इसलिये इसके अनेक ऐसे प्रयोग हैं जिनके करने से व्यक्ति की समस्यायें तथा दु:ख दूर होते हैं तथा सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इनके प्रयोग से ब्रह्मा,विष्णु,महेश की कृपा भी प्राप्त होती है। संक्षेप में पलास के कुछ धार्मिक प्रयोग इस प्रकार से किये जा सकते हैं:-

> जिस व्यक्ति को व्यापार में पर्यात लाभ की प्राप्ति नहीं हो रही है, कर्ज की समस्या रहती है, उसे पलास का यह प्रयोग अवश्य करना चाहिये। शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार को पलास वृक्ष की जड़ प्राप्त करें। इसे स्वच्छ जल से साफ कर लें। एक कमरे अथवा अपनी सुविधा के अनुसार स्थान चयन कर गंगाजल अथवा गोमूत्र के छटे देकर स्वच्छ कर लें। उसके ऊपर बाजोट रखकर, बाजोट के ऊपर लाल रेशमी वस्त्र बिछायें। बाजोट के बीच में सात प्रकार के अन्न 100-100 ग्राम की मात्रा में लेकर मिलाकर ढेरी बनायें। इस पर पलास की जड़ को रख दें। अब दीपक प्रज्ज्वलित करें। अगरबत्ती लगायें। लक्ष्मी जी के किसी भी मंत्र की 3-5 अथवा 11 माला का जाप करें। मानसिक रूप से माँ लक्ष्मी से निवेदन करें- हे माँ, मेरी समस्याओं को दूर करके सुख-समृद्धि प्रदान करें। अब इस जड़ को एक छोटे लाल वस्त्र में लपेट कर अपने गल्ले अथवा धन रखने के स्थान पर रख दें। इसके पश्चात् पूरे श्रम एवं क्षमता से अपने काम में लग जायें। परिणाम प्राप्ति के प्रति व्यग्रता नहीं दिखायें। माँ लक्ष्मी की कृपा से अवश्य ही आपकी समस्या दूर होकर आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त होगी।

> पलास की मूल को शुभ मुहूर्त में किसी भी दिन निकाल लें। इसे एक सूती धागे में लपेटकर भुजा में बांधने से ज्वर दूर होता है। इस प्रयोग में श्वेत पलास की अपेक्षा लाल पलास ज्यादा प्रभावी होता है। > श्वेत पलास के कुछ पुष्पों को शुभ मुहूर्त में प्रार्थना कर उन पर जल के छींटे देकर, अगरबत्ती का धुआं दिखाकर तोड़ लायें। इन पुष्पों को तिजोरी में सुरक्षित रखने से धन वृद्धि होती हैं। धन का आगमन तेज होता है।

> जो स्त्री पलास का एक ताजा पता 250 ग्राम दूध में उबालकर गर्भस्थापन के पूर्व से प्रारम्भ कर गर्भस्थापना होने के 2 महीने बाद तक नियमित रूप से उस दूध को लेती है तो उसे पुत्र संतति होती है। इस प्रयोग में पते को उबालने के पश्चात् निकालकर फेंक दिया जाता है। केवल दूध को पीना पड़ता है।

> जो व्यक्ति पलास के पुष्पों को गाय के शुद्ध घी में मिलाकर हवन करता है, उसकी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।

> सफेद पलास की किसी भी शाखा के ऊपरी 4-6 अंगुल के हिस्सों को तोड़कर सुखा लें। इन टुकड़ों को दही, शहद तथा शुद्ध घी में डुबोकर उनका हवन करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। शत्रुओं का शमन होता है।

> जो व्यक्ति सफेद पलास के वृक्ष पर चढ़कर आकाश की ओर देखता है तो उसे आकाश में दिन के समय भी तारों के दर्शन होते हैं। इसी प्रकार इस पेड़ पर चढ़कर नीचे की ओर देखने से जमीन में चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देता है जिसके कारण देखने वाला भयभीत हो उठता है। यह शोध का विषय है।

पलास का ज्योतिषीय महत्त्व

जो व्यक्ति पलास के पुष्प, गुलाब के पुष्प, मोगरा के पुष्प अथवा चमेली के पुष्प एवं तुलसी पत्र को स्नान के जल में डालकर उस जल से स्नान करता है, उसके ऊपर से ग्रहों के कुप्रभाव समाप्त होते हैं। प्रयोग 31 दिनों तक निरन्तर करना पड़ता है। चूंकि पलास के पुष्प मार्च-अप्रेल के महीनों में ही होते हैं, अत: पुष्प प्राप्त न हो पाने की स्थिति में पलास की लकड़ी का प्रयोग भी किया जा सकता है।

पलास का वास्तु में महत्त्व

वास्तु की दृष्टि से पलास के वृक्ष का घर की सीमा में होना शुभ नहीं होता। घर की सीमा में इसके होने से घर में अशान्ति होती है, विघटन भी हो सकता है अथवा घर का कोई न कोई सदस्य प्राय: घर से बाहर ही जाता रहता है। इसलिये इस वृक्ष को अपने घर की सीमा में कदापि न लगायें।

पलास का औषधीय महत्त्व

पलास का पौधा वसन्त ऋतु में अपने नारंगी तथा लाल पुष्पों से सुशोभित हो उठता है। इस वृक्ष से प्राय: सभी परिचित हैं। अत्यन्त सुन्दर पुष्प होते हुये भी इनमें किसी प्रकार की गंध नहीं होती है अर्थात् इसके पुष्प गंधहीन होते हैं। बाह्य रूप से अपनी तड़क-भड़क दिखाने वाले गुणहीन व्यक्तियों के लिये पलास की उपमा दी जाती है। इसके लिये कहा जाता है-निर्गन्धा इव। किंशुका। गंधहीन पुष्पों के उपरांत भी इसके औषधीय महत्व से इन्कार नहीं किया जा सकता है। चिकित्सा के लिये इस वृक्ष के प्राय: सभी अंग काम में लाये जाते हैं। इनकी प्रकृति गर्म होती है किन्तु पुष्प शीतल होते हैं। औषधीय रूप में पलास को अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसके समस्त गुणों को यहाँ व्यक्त करना कठिन है किन्तु कुछ विशेष उपायों के बारे में यहाँ जानकारी दी जा रही है:-

> मन्दाग्नि तथा बवासीर के रोगी को पलास वृक्ष की छाल का काढ़ा बना पिलाने से लाभ मिलता है। इस वृक्ष की 10-15 ग्राम के लगभग छाल प्राप्त कर लें और उसे मोटा-मोटा कूट लें। 200 मि.ली. जल में इसे डाल कर उबालें। जब एक भाग जल शेष रह जाये और तीन भाग पानी जल जाये तो इसे आंच से उतार लें। थोड़ा ठण्डा करके इसमें स्वाद के अनुसार मिश्री मिलाकर रोगी को सेवन करायें। इससे पर्यात लाभ की प्राप्ति होती है।

> जिन स्त्रियों को श्वेतप्रदर की समस्या हो, उन्हें इस काढ़े के द्वारा योनि प्रक्षालन करना चाहिये। इसके लिये काढ़े में मिश्री नहीं मिलायें।

> मिरगी रोग में इसके बीज अत्यन्त लाभदायक पाये गये हैं। जब किसी रोगी को मिरगी का दौरा आ जाये तो उसे होश में लाने के लिये पलास के बीजों के चूर्ण को सुंघाया जाता है। रोगी को तत्काल लाभ मिलता है।

> इसे श्रेष्ठ रसायन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इसके छाया में सुखाये हुये पंचांग का चूर्ण प्राप्त कर लें। एक चम्मच शुद्ध घी, एक चम्मच शहद तथा एक चम्मच पंचांग का चूर्ण लेकर मिला लें और सेवन करें।इसका सेवन रात्रि सोने से पूर्व करें तथा ऊपर से गुनगुना गाय का दूध पी लें। ऐसा करने से व्यक्ति दीर्घायु एवं निरोगी रहता है।

> जिस व्यक्ति को बार-बार नकसीर की समस्या रहती हो, उसके लिये इसके पुष्यों का प्रयोग लाभदायक सिद्ध होता है। इसके लिये 7-8 पलास के पुष्प प्राप्त करें। रात्रि को एक गिलास जल में इन्हें डाल दें। प्रात: इस जल को छान लें और आवश्यकता के अनुसार मिश्री अथवा शहद मिलाकर सेवन करें। बार-बार होने वाली नकसीर की समस्या समाप्त होगी।

> पेट में कीड़े हों और इससे पाचन सम्बन्धी समस्या हो तो पलास के बीजों का प्रयोग करें। पलास के बीज सुखाकर उसका चूर्ण बना लें। पेट में कीड़े होने की स्थिति में एक-एक चम्मच सुबह एवं रात्रि में जल के द्वारा सेवन करें। पेट के कीड़े मर कर बाहर आ जायेंगे।

> जिन व्यक्तियों को भूख कम लगती है वे भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिये पलास की ताजी जड़ का रस निकाल लें। इसकी 4-5 बूंदे नागरबेल के पते में रखकर सेवन करने से भूख बढ़ती है।

> इसके गोंद का प्रयोग अल्पमात्रा में भोजन में करने से अतिसार में लाभ होता है। > इसके बीज को नींबू के रस में पीसकर लगाने से चर्मरोगों में लाभ होता है।

> इसके थोड़े से फूलों को जल में उबाल लें। ठण्डा होने पर उस जल को छान कर " स्नान करने वाले जल में मिलाकर स्नान करने से शरीर निरोगी होता है।

पलास का दिव्य प्रयोग

पलास की दो जातियों में लाल तो सुलभ है किन्तु सफेद पलास आसानी से उपलब्ध , नहीं होता। सफेद पलास के पुष्प सफेद होते हैं, शेष पौधे में लाल पलास के समान रचना आदि में कोई अंतर नहीं होता। इसके नीचे बैठने से विचारधारा में सकारात्मक परिवर्तन आता है। इसके पुष्पों को शुभ मुहूर्त में प्रार्थना करके तोड़कर तिजोरी में सहेज कर रखने से । धनागम में वृद्धि होती है। इसी प्रकार इसके बीजों को जेब अथवा तिजोरी में रखने से भी सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इसकी टहनियों को जल में डालकर उस जल से स्रान करने से सर्वार्थ कल्याण होता है।

इसके किसी भी भाग को पौधे से पृथक करने हेतु निम्न प्रार्थना अवश्य करें-हे श्वेत पलास देवता! आपको मैं प्रणाम करता हूँ। हे देव! आपकी आज्ञा और अनुमति से आपके कुछ पुष्यों को (या टहनियों को या फलियों को) ले जा रहा हूँ। आप मुझ पर अपनी कृपा बनाये रखना तथा हे प्रभो, मेरा वांछित कार्य अवश्य ही सम्पन्न करने की कृपा करना।

इसी प्रकार सफेद पलास, अगर वह उपलब्ध न हो सके तो लाल पलास की कुछ टहनियों को उक्त प्रार्थना कर तोड़ लायें। इन्हें घर में सहेज कर रख लें। प्रत्येक शनिवार को इसकी एक टहनी को घी में डुबोकर देसी कपूर के साथ जलाने से घर के संकटों का शमन होता है, घर पर कोई तांत्रिक प्रयोग हो तो उनका प्रभाव समाप्त होता है तथा बाधायें दूर होती हैं

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    अनुक्रम

  1. उपयोगी हैं - वृक्ष एवं पौधे
  2. जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां
  3. जड़ी-बूटियों से संबंधित आवश्यक जानकारियां
  4. तुलसी
  5. गुलाब
  6. काली मिर्च
  7. आंवला
  8. ब्राह्मी
  9. जामुन
  10. सूरजमुखी
  11. अतीस
  12. अशोक
  13. क्रौंच
  14. अपराजिता
  15. कचनार
  16. गेंदा
  17. निर्मली
  18. गोरख मुण्डी
  19. कर्ण फूल
  20. अनार
  21. अपामार्ग
  22. गुंजा
  23. पलास
  24. निर्गुण्डी
  25. चमेली
  26. नींबू
  27. लाजवंती
  28. रुद्राक्ष
  29. कमल
  30. हरश्रृंगार
  31. देवदारु
  32. अरणी
  33. पायनस
  34. गोखरू
  35. नकछिकनी
  36. श्वेतार्क
  37. अमलतास
  38. काला धतूरा
  39. गूगल (गुग्गलु)
  40. कदम्ब
  41. ईश्वरमूल
  42. कनक चम्पा
  43. भोजपत्र
  44. सफेद कटेली
  45. सेमल
  46. केतक (केवड़ा)
  47. गरुड़ वृक्ष
  48. मदन मस्त
  49. बिछु्आ
  50. रसौंत अथवा दारु हल्दी
  51. जंगली झाऊ

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